Thursday, July 2, 2009

Friday, November 28, 2008

घर जाने की तैयारी में था शहीद

कोझिकोड। मुंबई में आतंकियों से लोहा लेते हुए अपनी जान न्यौछावर कर देने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड [एनएसजी] के कमांडो संदीप उन्नीकृष्णन अगले महीने केरल में अपने घर जाने वाले थे।
राज्य के कोझिकोड जिले में बेयपोर इलाके में उनका पुश्तैनी घर है। संदीप के शहीद होने की खबर आते ही यहां का माहौल गमगीन हो गया।
28 वर्षीय संदीप ताज होटल में बृहस्पतिवार रात गंभीर रूप से घायल हो गए थे। शुक्रवार को उन्होंने दमतोड़ दिया। उनके चाचा अशोक कुमार ने बताया कि संदीप यहां अगले महीने आने वाले थे।

taj hui aajjad

Nov 28, 07:38 pm
मुंबई। नरीमन हाउस के लिए जाने वाली संकरी गलियां। अत्याधुनिक हथियारों से लैस और पोजीशन लिए सुरक्षा कर्मी। मंडराते और हवा में ठहर कर कमांडो उतारते हेलीकाप्टर। ग्रेनेड धमाकों और फायरिंग से गूंजता इलाका। कहीं से भी नहीं लग रहा था कि यह रणक्षेत्र नहीं है। इसके साथ ही सब को इंतजार था कि कब मारे जाए आतंकी और रिहा हो बंधक, छंटे संकट के बादल। कुल मिलाकर शुक्रवार को भी मुंबई दहशत और अफरातफरी से दो-चार होता रही।
आतंकियों के खिलाफ निर्णायक आक्रमण की तैयारी शुक्रवार को तड़के शुरू हो गई थी। दिन निकलने के साथ यह कार्रवाई तेज हुई। एनएसजी के कमांडो हेलीकाप्टर से यहूदियों के रिहायशी कांप्लेक्स नरीमन हाउस की छत पर उतारे जाने लगे। इस दौरान आतंकी इमारत की चौथी मंजिल से अंधाधुंध गोलियां बरसाए जा रहे थे। लेकिन कमांडो का आखिरी यानी छठी मंजिल पर उतारा जाना जारी रहा। तीन बार हेलीकाप्टर से कमांडो उतारे गए। थोड़ी ही देर में कमांडो ने अपनी-अपनी पोजीशन ले ली। इसके बाद एक जासूसी हेलीकाप्टर ने इमारत के दो चक्कर लगाए। यह हेलीकाप्टर हाई क्वालिटी की तस्वीरें लेने के उपकरणों से लैस था। ऐसा माना जा रहा था कि इमारत में रहने वाले लोगों खासकर बुजुर्गो को आतंकियों ने बंधक बना रखा है। लेकिन बंधकों की तादाद कितनी थी, स्पष्ट नहीं था। एंबुलेंस और फायर ब्रिगेड की गाड़िया भी तैयार खड़ी थीं। अचूक निशानेबाज झलक मिलते ही आतंकियों को मार गिराने की ताक में थे। कुछ ऐसे ही हालात ट्राइडेंट होटल के इर्द-गिर्द थे। सुबह से रुक-रुक कर फायरिंग के बीच एनएसजी कमांडो ने बिल्डिंग की घेराबंदी कर रखी थी। ऊपर हेलीकाप्टर चक्कर काट रहे थे। दूसरी ओर होटल के अंदर सुरक्षा कर्मी आतंकियों की तलाश और बंधकों की रिहाई के लिए कमरा दर कमरा तलाशी ले रहे थे। समय के साथ हालात हालांकि नियंत्रण में आते जा रहे थे। ट्राइडेंट से 30 बंधकों को रिहा भी करा लिया गया था। लेकिन मुंबई का फाइनेंशियल हब दक्षिण हलका पूरी तरह सन्नाटे में था। कोलाबा में दुकानों और अन्य वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों के शटर गिरे रहे। लगातार दूसरे दिन भी लोगों ने खुद को घरों में ही कैद रखना बेहतर समझा, लेकिन एक उम्मीद जरूर थी कि यह संकट जल्द से जल्द छंट जाएगा। 25 वर्षीय सुनंदा का कहना था-'हमारे पापा दफ्तर जाने की तैयारी में थे। लेकिन मैंने अपनी मां से कहलवाया कि उन्हें जाने से रोकें, क्योंकि उनका दफ्तर कोलाबा में ही है। पता नहीं हमने अपने टेलीविजन को कितने घंटों से बंद नहीं किया है।' इस हालात से रूबरू होने वाली सुनंदा इकलौती मुंबईकर नहीं हैं। प्राय: हर शहरी इस दहशत में था कि जाने कब क्या हो जाए।